परशुराम का फरसा: चमत्कारिक फरसे का गुप्त रहस्य और यात्रा निर्देश (2023)

 भगवान परशुराम का फरसा। Parshuram ka farsa kaha hai

परशुराम का फरसा
Parshuram ka farsa

 

परशुराम का फरसा: parshuram ka farsa :- बाबा टांगीनाथ धाम जहाँ पर आज भी गड़ा हुआ है साक्षात भगवान परशुराम का फरसा । भगवान परशुराम को कोन नहीं जनता भगवान परशुराम का जिक्र रामायण के कथावाओं और वेदों – पुराणों में किया गया है । कहा जाता है भगवान परशुराम जी का फरसा आज भी भारत के एक राज्य झारखण्ड के गुमला जिले से 75 किलोमीटर दूर एक छोटे से डुमरी शहर के एक पहाड़ी पर स्तिथ है और इसे देखने आज भी लोग दूर दूर से यहाँ पर आते है । तो इस आर्टिकल में आप जान पाएंगे की भगवान परशुराम का फरसा साक्षात कहाँ पर गड़ा हुआ है , आप इस जगह पर दर्शन के लिए कैसे पहुँच सकते है , इस फरसे से जुड़ी कथा , यहाँ कब जाना सबसे अच्छा हो सकता है। तो मेरा आपसे ये विनती है की आर्टिकल को पूरा जरुर पढ़े ताकि आपको बाबा टांगीनाथ दर्शन में कोई दिक्कत परेशानी ना आये और जानकारी भी मिल सके ।

टांगीनाथ धाम । ( tanginath dham )

टांगीनाथ धाम जहाँ पर साक्षात गड़ा हुआ परशुराम का फरसा टांगीनाथ का नाम इसी फरसे की वजह से पड़ी है – झारखण्ड के स्थानीय भाषा में फरसा को टांगी कहा जाता है । ये फरसा लोहे की है और सालों से खुले आश्मान के निचे धुप – बारिश होने के  बावजूद भी आज तक इसमें जंग नहीं लगा है और ये अपने आप में एक रहस्य की बात है । वहाँ के पुजारी बताते है एक बार लोहे के लालच में वहाँ के लोहार उस लोहे को काटने की कोसिस की लेकिन वे असफल रहें और कुछ दिन बाद उस लोहार के परिवार के सभी सदस्य की रहस्यमय तरह से मृत्यु होने लगी और वे उस जगह को छोड़ के भाग गये और आज भी बाबा टांगीनाथ धाम के पूरब दिशा की ओर दूर – दूर तक और अगल -बगल गाँव में लोहार नहीं बस सकें ।  जहाँ पर ये फरसा गड़ा हुआ उसके चारो और सैकड़ो शिवलिंग भी मौजूद है ।

टांगीनाथ धाम की कथा । ( tanginath dham story )

कथावों के अनुसार लोगो का मानना है की अपने पिता के कहने पर भगवान परशुराम जी ने अपने माता रेणुका की सिर काट दिया था फिर पिता के वरदान से उन्हें फिर से जिन्दा भी करवाया लेकिन माता के हत्या के दोष से मुक्त होने के लिए वे टांगीनाथ चले गये और अपने तपस्या से भगवान शिव जी को प्रशन कर दोष मुक्त हुए थे । इसके अलावा कई लोग ये भी मानते है, रामायण के कथावों में तो आप सुने ही होंगे सीता स्वयम्बर के समय भगवान श्री राम ने स्वयं शिव जी के धनुष को तोड़ दिए थे तब भगवान परशुराम इससे बहुत ही ज्यादा क्रोधित हो गये और भरे सभा में आ कर श्री राम को डटने लगे लेकिन श्री राम चुप रहें फिर जब परशुराम को ज्ञात हुआ की श्री राम स्वयं भगवान बिष्णु के अवतार है तो खुद पर उन्हें बहुत ज्यादा क्रोध आया और वहाँ से निकल कर जंगलो में चले गये और अपना फरसा जमीन में गाड़ कर अपने किये  शिव जी का तप करने लगे । और माना जाता है की वह जगह गुमला की टांगीनाथ धाम ही है । इस फरसे से जुड़ी  वैज्ञानिक तथ्य भी है ।

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परशुराम की फरसा की खुदाई ।

1989 में पुरातत्व विभाग ने इस फरसे की खुदाई की थी वहाँ उन्हें हिरा , मुकुट और सोना – चांदी के कुछ बहुमूल्य आभूषण के साथ कई और कीमती वास्तु भी मिले थे लेकिन कुछ दुरी के खुदाई के बाद इसे अचानक बंद कर दी गई और ये एक रहस्य ही रह गया की क्या कारण से पुरातत्व विभाग ने इस खुदाई को रोक दिया। फरसा इतना बड़ा है की उसे नार्मल व्यक्ति उठा ही नहीं सकता है ।  जितने भी वास्तुवें मिली थी वे आज भी डुमरी थाना में रखा हुआ है ।

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बाबा टांगीनाथ धाम कैसे पहुचें । parshuram ka farsa kaha hai ?

तो सबसे पहले जानते है की बाबा टांगीनाथ धाम कैसे पहुँचा जाये । इस धाम पर पहुचने के लिए दो रास्तें है । अगर आप झारखण्ड की राजधानी रांची से अपना सफ़र सुरु करते है तो आप बिना गुमला जिला गए रांची – सिसई – घाघरा – चैनपुर होते हुए बाबा धाम पहुच सकते है । इसके अलावा आपके पास ज्यादा समय है तो फिर आप रांची – सिसई – गुमला – चैनपुर फिर बाबा धाम ये रास्ता चुन सकते है इसमे आप गुमला में ठहर भी सकते है फिर अगले दिन गुमला से सुबह – सुबह बाबा धाम के लिए निकल जाये गुमला जिला से बाबा धाम की दुरी लगभग 75 किलोमीटर है ।

यहाँ कब जाना सबसे अच्छा हो सकता है।

वैसे तो टांगीनाथ धाम घुमने के लिए साल के किसी भी महिना में जाया जा सकता है, लेकिन यहाँ पर सबसे ज्यादा शावन के महिना में श्रद्धालु आते है और यहाँ पर महाशिवरात्रि के दिन मेला भी लगता है तो इस समय यहाँ पर जाने का सबसे अच्छा समय है ।

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